लाई बहार शौक़ के सामाँ नए नए दुनिया नई नई सी दिल ओ जाँ नए नए साक़ी की इक निगाह ने बख़्शी हयात-ए-नौ दिल में मचल गए मिरे अरमाँ नए नए हर आन तर्ज़-ए-नौ से सताए है आसमाँ मेरे लिए सितम के हैं उनवाँ नए नए बर्बादियों का अपने नशेमन की ग़म नहीं तामीर हो रहे हैं गुलिस्ताँ नए नए फ़स्ल-ए-बहार आई मुबारक हो ऐ जुनूँ दामन नए नए हैं गरेबाँ नए नए उस चश्म-ए-नीम-बाज़ की वो कम-निगाहियाँ दिल में उतर गए मिरे पैकाँ नए नए मस्जिद में भी फ़साना बुतों का जनाब-ए-शैख़ शायद हुए हैं आप मुसलमाँ नए नए 'मुमताज़' इक चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़र सही होंगे चराग़ उस से फ़रोज़ाँ नए नए