नज़रों का मोहब्बत भरा पैग़ाम बहुत है मजबूर-ए-वफ़ा के लिए इनआ'म बहुत है कुछ बादा-ओ-साग़र की ज़रूरत नहीं मुझ को आँखों से छलकती मय-ए-गुलफ़ाम बहुत है क्या हाल हो क्या जाने शब-ए-ग़म की सहर का बेताबी-ए-दिल आज सर-ए-शाम बहुत है तौहीन-ए-मोहब्बत हैं मोहब्बत में ये शिकवे लगता है अभी हुस्न-ए-तलब-ख़ाम बहुत है बे-वज्ह मुझे बेवफ़ा कहते तो हो लेकिन तुम पर भी इसी क़िस्म का इल्ज़ाम बहुत है नादान रह-ए-इश्क़ को आसान न समझें इस राह में कठिनाई ब-हर-गाम बहुत है इस शौक़ अदाओं को कोई कुछ नहीं कहता चर्चा मिरी उल्फ़त का सर-ए-आम बहुत है कुछ आ ही गया दोस्त का दुश्मन का सलीक़ा एहसान तिरा गर्दिश-ए-अय्याम बहुत है अफ़्कार-ए-ज़माना कभी अफ़्कार-ए-मोहब्बत है ज़िंदगी थोड़ी सी मगर काम बहुत है ऐ 'मौज' सुकूँ-बख़्श हैं अमवाज-ए-मोहब्बत आग़ोश में तूफ़ाँ के भी आराम बहुत है