कहीं से भी सुख़न-ए-मो'तबर नहीं आता नज़र हमें कोई अहल-ए-नज़र नहीं आता हवा-ए-दश्त ये तासीर-ए-ख़ुद-फ़रामोशी बहुत दिनों से तसव्वुर में घर नहीं आता अजब शनावर-ए-बहर-ए-वजूद हैं हम भी हमें ज़मान-ओ-मकाँ का सफ़र नहीं आता लहू से लफ़्ज़ की तख़्लीक़ हम नहीं करते जभी तो अपने बयाँ में असर नहीं आता ये सोचते हैं कि मंज़िल-रसी से क्या हासिल जब अपने साथ कोई हम-सफ़र नहीं आता ये अर्सा-गाह-ए-तलब क़ुर्बतों की दुनिया है यहाँ हम ऐसा कोई बे-हुनर नहीं आता दरीचे रोज़ ही खुलते हैं बंद होते हैं मगर वो चेहरा-ए-रंगीं नज़र नहीं आता हिजाब कौन सा माने' है कुछ नहीं मा'लूम मैं चाहता हूँ वो आए मगर नहीं आता तिलिस्म-ए-तीरा-शबी 'लैस' किस तरह टूटे कोई भी ले के पयाम-ए-सहर नहीं आता