लाज़मी तो नहीं वली हो जाए आदमी काश आदमी हो जाए क्यूँ न बदनाम-ए-आशिक़ी हो जाए जब लगी दिल की दिल लगी हो जाए रोज़ का टूटना बिखरना क्यूँ जो भी होना है आज ही हो जाए लम्हा लम्हा जियूँ तुझे जानाँ तू अगर मेरी ज़िंदगी हो जाए मेरी आँखें छलकने लगती हैं गर कोई दोस्त अजनबी हो जाए घर हमारा धुआँ धुआँ सा है खोल खिड़की कि रौशनी हो जाए कौन 'एजाज़' पर करेगा उसे अपने अंदर अगर कमी हो जाए