लाख दिल-मस्त हो मस्ती का अयाँ राज़ न हो ये वो शीशा है कि टूटे भी तो आवाज़ न हो ख़ौफ़ है मौसम-ए-गुल में कि सबा का झोंका ताइर-ए-होश के हक़ में पर-ए-परवाज़ न हो दिल बहुत बुलबुल-ए-शैदा का है नाज़ुक गुलचीं फूल गुलज़ार के यूँ तोड़ कि आवाज़ न हो क्या क़यामत है वो दिल तोड़ रहे हैं मेरा इस गुमाँ पर कि छुपा इस में कोई राज़ न हो आईना हाथ में है हुस्न का नज़्ज़ारा है उन से कह दो मिरी हालत नज़र-अंदाज़ न हो हो के वो मस्त-ए-मय-ए-नाज़ गले लिपटे हैं होश कम्बख़्त कहीं तफ़रक़ा-पर्दाज़ न हो उस गिरफ़्तार की पूछो न तड़प जिस के लिए दर क़फ़स का हो खुला ताक़त-ए-परवाज़ न हो अहल-ए-दिल को जो लुटाती है सदा नग़्मे की पर्दा-ए-साज़ में पिन्हाँ तिरी आवाज़ न हो थाम लेने दो कलेजा मुझे हाथों से 'जलील' क़िस्सा-ए-दर्द-ए-जिगर का अभी आग़ाज़ न हो