लाख हँस-बोल लें हम फिर भी गिला रहता है कोई मौसम हो मगर ज़ख़्म हरा रहता है कुछ तबीअत को है अफ़्सुर्दा-दिली से निस्बत और कुछ रंज भी अब दिल को सिवा रहता है की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा अब मिरे हक़ में वो मसरूफ़-ए-दुआ रहता है किस तरह ख़ल्वत-ए-दिल में हुआ औरों का गुज़र लोग कहते हैं कि इस घर में ख़ुदा रहता है धूप भी चाहिए पानी भी हवा भी वर्ना बीज मिट्टी में दबा हो तो दबा रहता है