लाख करता रहे तवाफ़-ए-हरम दिल ब-दस्तूर है ख़ुद एक सनम जिन रफ़ीक़ों के ग़म को अपनाया वो भी आए बरा-ए-पुर्सिश-ए-ग़म ज़ुल्मत-ए-शब की आँख का तारा मेरा दिल जिस पे दिन के लाख सितम रौशनी की रमक़ नहीं दिल में तेरे माथे की चाँदनी की क़सम मुंतशिर हो रहा है ज़ौक़-ए-नज़र रिफ़अत-ए-आरज़ू कहाँ हैं हम