लाख ख़ुर्शेद सर-ए-बाम अगर हैं तो रहें हम कोई मोम नहीं हैं कि पिघल जाएँगे हर गली-कूचे में रुस्वा हुए जिन की ख़ातिर क्या ख़बर थी कि वही लोग बदल जाएँगे उन के पीछे न चलो उन की तमन्ना न करो साए फिर साए हैं कुछ देर में ढल जाएँगे क़ाफ़िले नींदों के आए हैं उन्हें ठहरा लो वर्ना ये दूर बहुत दूर निकल जाएँगे