मर के टूटा है कहीं सिलसिला-ए-क़ैद-ए-हयात मगर इतना है कि ज़ंजीर बदल जाती है असर-ए-इश्क़ तग़ाफ़ुल भी है बेदाद भी है वही तक़्सीर है ताज़ीर बदल जाती है कहते कहते मिरा अफ़्साना गिला होता है देखते देखते तक़दीर बदल जाती है रोज़ है दर्द-ए-मोहब्बत का निराला अंदाज़ रोज़ दिल में तिरी तस्वीर बदल जाती है घर में रहता है तिरे दम से उजाला ही कुछ और मह ओ ख़ुर्शीद की तनवीर बदल जाती है ग़म नसीबों में है 'फ़ानी' ग़म-ए-दुनिया हो कि इश्क़ दिल की तक़दीर से तदबीर बदल जाती है