लाख कोई दे दिलासा आप को By Ghazal << इतने ज़माने भर के सितम दे... नर्गिसिस्ताँ की भी टुक दे... >> लाख कोई दे दिलासा आप को आप का ग़म आप का ही होता है मिल तो जाते हैं कई कंधे मगर बोझ अपना आदमी ख़ुद ढोता है कौन रोया रफ़्तगाँ के ग़म में याँ तू ख़याल-ए-मर्ग कर के रोता है रात भर मातम मना कर सुब्ह में ओस से गुल दाग़ शब के धोता है Share on: