इतने ज़माने भर के सितम देखते रहे फिर भी ख़ुदा का सब पे करम देखते रहे घर को हमारे सामने लूटा गया मगर मूरत बने खड़े हुए हम देखते रहे मिट्टी का इक खिलौना जो बच्चे से गिर गया तब से हम उस की आँखों को नम देखते रहे देखा न होगा चाँद किसी ने क़रीब से था रू-ब-रू ख़ुदा की क़सम देखते रहे अब तक किसी भी चेहरे पे ठहरी नहीं नज़र 'इरफ़ान' क्या था तुझ में जो हम देखते रहे