लाला-ज़ारों में ज़र्द फूल हूँ मैं फ़स्ल-ए-गुल है मगर मलूल हूँ मैं चाँद-तारों को रश्क है मुझ पर तेरे क़दमों की सिर्फ़ धूल हूँ मैं क्यूँ मुझे संगसार करते हो कब ये मैं ने कहा रसूल हूँ मैं नूर-ए-सर-मस्ती-ए-अबद हूँ मगर मय-ए-शफ़्फ़ाफ़ में हुलूल हूँ मैं रंज-ओ-ग़म क्यूँ न मेरी क़द्र करें बे-ग़रज़ और बा-उसूल हूँ मैं चाँदनी क्या पयाम लाई है आज कुछ और भी मलूल हूँ मैं सब के हक़ में हूँ शाख़-ए-गुल लेकिन सिर्फ़ अपने लिए बबूल हूँ मैं मुझ पे ही यूरिश-ए-अलम क्यूँ है जब हक़ीक़त में तेरी भूल हूँ मैं ग़म-ए-हिज्राँ ही वो सही 'आबिद' कोई तो है जिसे क़ुबूल हूँ मैं