मुक़द्दर में साहिल कहाँ है मियाँ मिरी नाव बे-बादबाँ है मियाँ जो बर्क़-ए-तपाँ से मुनव्वर रहे वही आशियाँ आशियाँ है मियाँ कहाँ जाइए मय-कदा छोड़ कर यही एक जा-ए-अमाँ है मियाँ अबद तक मुकम्मल न हो पाएगी शब-ए-ग़म की ये दास्ताँ है मियाँ कहाँ पावँ रक्खूँ परेशान हूँ ज़मीं सूरत-ए-आसमाँ है मियाँ मुक़द्दस सही कारोबार-ए-वफ़ा मगर इस में नुक़सान-ए-जाँ है मियाँ अजब फीकी फीकी सी है चाँदनी उदास आज क्यूँ चन्द्रमाँ है मियाँ जहाँ दिल के बदले में मिलता है दिल वो दुनिया न जाने कहाँ है मियाँ नहीं मुझ से 'आबिद' वो कुछ ख़ास दूर फ़क़त ज़िंदगी दरमियाँ है मियाँ