लाला-ओ-गुल में बिखर जाएँगे हम कौन कहता है कि मर जाएँगे हम दिन इसी फ़िक्र में काटा हम ने रात आई तो किधर जाएँगे हम और हो जाए अँधेरा गहरा ज़िंदगी और निखर जाएँगे हम और बरहम हो निज़ाम-ए-हस्ती दिल ये कहता है सँवर जाएँगे हम मुंतज़िर है कोई काँटों से परे पाँव कट जाएँ मगर जाएँगे हम देख लें हम को ज़माने वाले संग-ओ-आहन में उतर जाएँगे हम जगमगाते हुए ऐवानों से आइना ले के गुज़र जाएँगे हम मिट भी जाएँगे तो मानिंद-ए-ग़ुबार शाह-राहों पे बिखर जाएँगे हम 'नूर' जौलाँ है समंद-ए-वहशत आज ता-हद्द-ए-नज़र जाएँगे हम