ये लगता है अब भी कहीं कुछ बचा है तुम्हारा दिया ज़ख़्म अब तक हरा है कहो कौन सी शक्ल देखोगे अब तुम ये चेहरा तो इक आवरन से ढका है लगा है ज़माना इबादत में जिस की वो रहता कहाँ है तुम्हें कुछ पता है गुनाहों से तौबा करो वक़्त रहते वगर्ना तो दोज़ख़ का रस्ता खुला है मोहब्बत मोहब्बत मोहब्बत मोहब्बत अमाँ यार छोड़ो ये हल्का नशा है भलाई करो तो मिले है बुराई ये क़िस्सा मिरी ज़िंदगी से जुड़ा है ग़लत-फ़हमियाँ 'मीत' रक्खो न दिल में वही सच नहीं जितना तुम ने सुना है