ला-मकाँ से भी परे ख़ुद से मुलाक़ात करें खुल के तन्हाई की वुसअत पे ज़रा बात करें हर बड़े नाम को छोटों से जिला मिलती है शहर की हाशिया-आराई मज़ाफ़ात करें लाज वीरानी की रखनी है चलो अहल-ए-जुनूँ आबला-पाई से आबाद ख़राबात करें खेत सूखे तो हवा फिर से सनक जाएगी आप बादल हैं तो दावा नहीं बरसात करें गुलनवाज़ो हमें काँटों ने नवाज़ा है बहुत हम पे वाजिब है कि ज़ख़्मों की मुदारात करें ऐश-ए-आवारगी क्या क्या थे तिरी गलियों में सोच की परियाँ वहीं अब गुज़र औक़ात करें मैं अगर ज़िक्र भी उस का न करूँ शेरों में इस्तिआ'रात अलामात इशारात करें मत्न को हुस्न के एराब अता हम ने किए हम से तशरीह तलब जिस्म की आयात करें ग़ैर महरम से बचा अपनी ग़ज़ल को 'आज़िम' छेड़ख़्वानी न कहीं मौलवी हज़रात करें