लम्बा रस्ता नंगे पाँव By Ghazal << मिट्टी का गुड्डा हो जैसे अरी ज़िंदगी गिला अब नहीं ... >> लम्बा रस्ता नंगे पाँव जाना है पर अपने गाँव शहर बड़ा ज़ालिम है यार बुला रही पीपल की छाँव क्यों इतने मजबूर हुए किस ने खेला ऐसा दाँव ऊँची लम्बी बिल्डिंग से बेहतर है काग़ज़ की नाव रुकना मत बस चलना है चाहे पैरों में हो घाव Share on: