अरी ज़िंदगी गिला अब नहीं जो हुआ था सब वो बजा हुआ मेरे प्यार का था जो कारवाँ वो रुका जहाँ था लुटा हुआ मेरी आरज़ू थी कि ख़ुशनुमा हो शगुफ़्ता गुलिस्ताँ हर कुजा तू वफ़ा की रस्में निबाह कि मिला सहरा मुझ को सजा हुआ मेरी जान पे जो गुज़र गई वो ख़ुदा की नेक अता हुई मेरे आंसुओं की नामी से धुल के ये गुलिस्ताँ भी हरा हुआ रहे रास्ते बड़े जाँ-सिताँ हुआ पुर-ख़तर यूँ मेरा सफ़र ये भी हौसला था जफ़ा का जो भी मिला मुझे वो जुदा हुआ मेरे माथे की तो शिकन पे इक बक़ा बे-रहम था लिखा हुआ लिखा हाथ की जो लकीर पे था वो जब मिला तो जुदा हुआ अरे दास्ताँ मेरा दिल 'सबा' जो निकाल कर कभी देखना ये जो तीर है मेरी ज़िंदगी का यूँ कब से मुझ में चुभा हुआ