लम्हों ने यूँ समेट लिया फ़ासला बहुत मैं ने पढ़ा तो कुछ न था लेकिन पढ़ा बहुत कितने जुनूँ-नवाज़ बिछड़ के चले गए जोश-ए-जुनूँ के साथ न था वलवला बहुत डूबा सफ़ीना जिस में मुसाफ़िर कोई न था लेकिन भरे हुए थे वहाँ ना-ख़ुदा बहुत सौ दाएरों में बट के नुमायाँ न हो सके सोचो अगर तो होगा बस इक दायरा बहुत शायद यही किताब-ए-मोहब्बत हो ला-जवाब मेरी वफ़ा के साथ है तेरी जफ़ा बहुत ज़ख़्मों के साथ साथ नमक-पाशियाँ भी थीं देखा है मेरे इश्क़ ने ये सिलसिला बहुत आँखों में दम टिका है वो आ जाएँ इस घड़ी दस्त-ए-तलब है मेरे लिए ये दुआ बहुत तुझ को 'शहीद' सादा-दिली की नज़र लगी इम्कान वर्ना तेरे लिए भी रहा बहुत