जो फ़क़त शोख़ी-ए-तहरीर भी हो सकती है वो मिरे पाँव की ज़ंजीर भी हो सकती है सिर्फ़ वीराना ही ग़मगीनी का बाइ'स तो नहीं अहद-ए-माज़ी की वो तस्वीर भी हो सकती है चश्म-ए-हसरत से जो टपकी है लहू की इक बूँद सुब्ह-ए-उम्मीद की तनवीर भी हो सकती है रंज-ओ-ग़म ठोकरें मायूसी घुटन बे-ज़ारी मेरे ख़्वाबों की ये ता'बीर भी हो सकती है बद-गुमाँ है तो वही मोरिद-ए-इल्ज़ाम हो क्यूँ कुछ न कुछ तो मिरी तक़्सीर भी हो सकती है होश क़ाएम रहें तूफ़ान-ए-हवादिस में अगर बच निकल जाने की तदबीर भी हो सकती है तीरगी बख़्त की समझो न उसे तुम 'अख़्तर' मुल्तफ़ित ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर भी हो सकती है