ले के फिर ज़ख़्मों की सौग़ात बहारो आओ चश्म-ए-पुर-नम के मुक़ाबिल तो फुहारो आओ चंद तिनकों का जलाना तो बड़ी बात नहीं अज़्म को मेरे जलाओ तो शरारो आओ ग़म का सैलाब ग़ज़ब दिल की शिकस्ता कश्ती मौज के साथ ही यादों के किनारो आओ तकते रहते हो किसे दूर से हैरानी से दिल के सहरा में कभी चाँद सितारो आओ आमद-ए-यार हो हर सम्त कँवल खुलते हूँ ख़्वाब में ही कभी रंगीन नज़ारो आओ