ले उड़ा ऐसे तिरा ध्यान मुझे तू भी लगती है अब अंजान मुझे हर सदा तेरी सदा लगती है क्या बताते हैं मिरे कान मुझे रेत का ढेर बना दे न कहीं धूप में तपता बयाबान मुझे सनसनाते हैं दर-ओ-बाम-ए-ख़याल कर गया कौन ये वीरान मुझे मैं ने पहचान लिया है तुझ को अब न कर मुफ़्त परेशान मुझे रच गई जिस में तिरे दर्द की धूप मैं वही 'शाम' हूँ पहचान मुझे