लिहाज़ करते अदब एहतिराम करते हुए गुज़र रहा हूँ मोहब्बत को आम करते हुए ये रात आ के मुझे फिर से जोड़ देती है मैं टूट जाता हूँ दिन इख़्तिताम करते हुए बग़ैर ज़ाद-ए-सफ़र हम पहुँच गए मंज़िल भटकते गिरते सँभलते क़याम करते हुए किसी का कोई भी किरदार रह न जाए कहीं ख़याल रखना कहानी तमाम करते हुए मिरा ज़मीर मलामत करे है यूँ मुझ पर मुझे जो देखे है तुझ को सलाम करते हुए ये मेरे पुश्ता-ए-जाँ में शिगाफ़ थे लेकिन किसी ने देखा नहीं रोक थाम करते हुए वो बात बात पे नाराज़ होने लगता है सो ख़ौफ़ आता है उस से कलाम करते हुए कोई मज़ाक़ नहीं उम्र भर की मेहनत को कलेजा चाहिए ग़ैरों के नाम करते हुए