मगर जो दिल में था वो कह गई है By Ghazal << ये तर्ज़-ए-जौर ये अंदाज़-... लिहाज़ करते अदब एहतिराम क... >> मगर जो दिल में था वो कह गई है सदा ख़ामोश हो के रह गई है अभी तक ज़िक्र है लहरों में उस का वो मौज-ए-ख़ैर थी जो बह गई है निछावर कर रहे थे हम ग़मों को मगर दीवार-ए-गिर्या ढह गई है ख़ुदा आबाद रक्खे ज़िंदगी को हमारी ख़ामुशी को सह गई है Share on: