लीजिए अब राज़-ए-दिल इफ़्शा हुआ हर तरफ़ बातें हुईं चर्चा हुआ मुझ पे भी तारी थी जैसे बे-ख़ुदी वो भी था जैसे कहीं खोया हुआ तेरे बिन जीना किसे मंज़ूर था ज़िंदगी से एक समझौता हुआ ख़ाना-ए-दिल में चराग़-ए-आरज़ू है कभी जलता कभी बुझता हुआ उस की रंगत पर खुले हर इक लिबास रूप उस का है अजब निखरा हुआ इक जवानी कैफ़ में डूबी हुई इक बदन महका हुआ तरशा हुआ अब तलक ताज़ा है यादों की महक आप से बिछड़े हुए अर्सा हुआ दिल जिगर अक़्ल-ओ-ख़िरद होश-ओ-हवास एक लश्कर था कि जो पसपा हुआ दिल के का'बे में मिरे अब भी 'ज़मीर' एक बुत मुद्दत से है रक्खा हुआ