पथरीली वो ज़मीन थी कोई रास्ता न था गुज़रा था किस मक़ाम से मुझ को पता न था वो बात मेरे नाम से मंसूब की गई जिस बात से तो मेरा कोई वास्ता न था मुश्किल घड़ी में बन के सहारा वो आ गया मेरी तरफ़ जो मुड़ के कभी देखता न था पत्थर कहाँ से आया था ये सोचना पड़ा इस शहर में तो मेरा कोई आश्ना न था अन्दर के फ़ासलों ने परेशान कर दिया ज़ाहिर का फ़ासला तो कोई फ़ासला न था 'रहबर' खड़ा था मैं किसी अनजाने मोड़ पर जारी सफ़र था आगे मगर रास्ता न था