लिखा हुआ है मोहब्बतों की ज़बूर में इंतिज़ार करना ये पूछना भी क़ुसूर है किस क़ुसूर में इंतिज़ार करना वो तेज़ रफ़्तार कुछ मुसाफ़िर जो जल्द-बाज़ी में मर गए हैं है हश्र तक अब उन्हें मुसलसल क़ुबूर में इंतिज़ार करना नशा न करना कि जाने हो जाए हिज्र में कब कोई करामत सो रह के पूरे हवास पूरे शुऊ'र में इंतिज़ार करना ये क्या ग़ज़ब है कि क़ुर्ब हासिल है पर नहीं इख़्तियार हासिल है हम को यानी तिरा ही तेरे हुज़ूर में इंतिज़ार करना वगर्ना तन्हाई की सियह रात दिल की बीनाई छीन लेगी सो तुम हमारा सुनहरी यादों के नूर में इंतिज़ार करना तवील दिन और सरों पे सूरज बदन पसीने में ग़र्क़ यानी सज़ा ही होगा सज़ा का यौम-ए-नुशूर में इंतिज़ार करना वो इश्क़ हो या हुसूल-ए-शोहरत ख़ुदी का इरफ़ाँ हो या कमाना मुझे पड़ा ज़िंदगी के सारे उमूर में इंतिज़ार करना हर इक बयाँ में सुना रहा है वो सब्र करने के ही फ़ज़ाएल ख़तीब को पड़ रहा है जो शौक़-ए-हूर में इंतिज़ार करना 'नबील' हो जाते हैं जहाँ में बहुत से लोग इस लिए भी पागल गिराँ गुज़रता नहीं है ज़ेहनी फ़ुतूर में इंतिज़ार करना