ख़ुशी के वक़्त भी वो लग रहा था रोया हुआ था बाग़-ए-वस्ल में फ़ुर्क़त का बीज बोया हुआ वो रात ख़्वाब में आया हुआ था मिलने मुझे मिरा नसीब था बेदार मैं था सोया हुआ नया लिबास कफ़न थोड़ी है जो मिल जाए सो हम ने ईद पे पहना लिबास धोया हुआ वो मेरे सामने है और फ़ोन में गुम है मिला है बरसों का खोया हुआ भी खोया हुआ तू जिस की लाश को अब झील से निकालता है वो बहर-ए-ग़म में था पहले तिरा डुबोया हुआ सितमगरो ये सज़ाओं की फ़स्ल काटो अब किसी ने ख़ून से था इंक़लाब बोया हुआ तू यूँ समझता है हक़दार ख़ुद को शोहरत का तुझे मरे हुए अर्सा 'नबील' गोया हुआ