लिखी थी जो कहानी वो कहानी याद आती है तुम्हारे प्यार की मुझ को निशानी याद आती है बहारों का समाँ सा है भरे गुलशन में देखो तो गुलाबों की वो रुत अक्सर सुहानी याद आती है कही है जो ग़ज़ल मैं ने उसी के नाम कर दी है हमें अब उस के लहजे की रवानी याद आती है कहाँ से लाऊँ ख़ून-ए-दिल तुम्हें अब याद करने को मैं जब सोचूँ तो इस दिल में पुरानी याद आती है 'नसीम' 'अख़्तर' कहाँ हैं अब वो जज़्बों से भरी रातें हमें अब अपने अश्कों की रवानी याद आती हे