लिए जा बस अपनी नज़र जाने वाले न कर राहबर राहबर जाने वाले क़यामत का होगा वो मंज़र जहाँ तक पहुँचते हैं सब बे-नज़र जाने वाले ये क्या मुझ में ऐसा नज़र आ गया है किधर आ रहे हैं किधर जाने वाले ठहर कर चलेंगे सुना है यहाँ से गुज़रते नहीं सब गुज़र जाने वाले रही हम-सफ़र इक सदा-ए-मुसलसल ठहर जाने वाले ठहर जाने वाले मोहब्बत का आग़ाज़ है चोट खा ले मिलेंगे अभी ज़ख़्म भर जाने वाले 'अमित' ऐसे दर से गुज़रना है बेहतर जहाँ दर-गुज़र हों ठहर जाने वाले