लफ़्ज़ों में आसानी रख शे'र मगर ‘इरफ़ानी रख इतना धोका चलता है आँखों में नादानी रख पहले-पहल सब अच्छा था कुछ कुछ याद पुरानी रख ध्यान हटा अब होंटों से क़दमों पर पेशानी रख कुछ भी नहीं है मंज़र में आँखों में हैरानी रख भूक और प्यास न मिटने पाए इतना दाना पानी रख सा से काम चला लूँगा रे गा मा पा धा नी रख हल्के हल्के क़दम बढ़ा सर पर बे-सामानी रख हर शय में मौजूद है जो उस की एक निशानी रख 'अमित' बुलाए वो हर बार इतनी आना-कानी रख