लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले 'ग़ालिब' ये ख़ौफ़ है कि कहाँ से अदा करूँ ख़ुश वहशते कि अर्ज़-ए-जुनून-ए-फ़ना करूँ जूँ गर्द-ए-राह जामा-ए-हस्ती क़बा करूँ आ ऐ बहार-ए-नाज़ कि तेरे ख़िराम से दस्तार गिर्द-ए-शाख़-ए-गुल-ए-नक़्श-ए-पा करूँ ख़ुश उफ़्तादगी कि ब-सहरा-ए-इन्तिज़ार जूँ जादा गर्द-ए-रह से निगह सुर्मा-सा करूँ सब्र और ये अदा कि दिल आवे असीर-ए-चाक दर्द और ये कमीं कि रह-ए-नाला वा करूँ वो बे-दिमाग़-ए-मिन्नत-ए-इक़बाल हूँ कि मैं वहशत ब-दाग़-ए-साया-ए-बाल-ए-हुमा करूँ वो इल्तिमास-ए-लज्ज़त-ए-बे-दाद हूँ कि मैं तेग़-ए-सितम को पुश्त-ए-ख़म-ए-इल्तिजा करूँ वो राज़-ए-नाला हूँ कि ब-शरह-ए-निगाह-ए-अज्ज़ अफ़्शाँ ग़ुबार-ए-सुर्मा से फ़र्द-ए-सदा करूँ