सोचा है कि अब कार-ए-मसीहा न करेंगे वो ख़ून भी थूकेगा तो पर्वा न करेंगे इस बार वो तल्ख़ी है कि रूठे भी नहीं हम अब के वो लड़ाई है कि झगड़ा न करेंगे याँ उस के सलीक़े के हैं आसार तो क्या हम इस पर भी ये कमरा तह-ओ-बाला न करेंगे अब नग़्मा-तराज़ान-ए-बर-अफ़रोख़्ता ऐ शहर वासोख़्त कहेंगे ग़ज़ल इंशा न करेंगे ऐसा है कि सीने में सुलगती हैं ख़राशें अब साँस भी हम लेंगे तो अच्छा न करेंगे