लोग जो दिल-फ़िगार होते हैं चलते फिरते मज़ार होते हैं जो मोहब्बत में ख़ार होते हैं साहब-ए-सद-वक़ार होते हैं जिन के दामन में ख़ार होते हैं क़द्र-दान-ए-बहार होते हैं जो मोहब्बत-शिआ'र होते हैं साज़िशों का शिकार होते हैं मेरी बर्बादी-ए-मोहब्बत पर आप क्यों शर्मसार होते हैं उन के क़ौल-ओ-क़रार क्या कहिए सिर्फ़ क़ौल-ओ-क़रार होते हैं अपना मतलब निकालने वाले किस क़दर होशियार होते हैं पुर-ख़ुलूसों की पूछते क्या हो ख़ार होते थे ख़ार होते हैं क्या ख़बर थी कि राह-ए-उल्फ़त में हर क़दम ख़ारज़ार होते हैं किस तवक़्क़ो पे लोग ऐ 'आसी' ज़िंदगी पर निसार होते हैं