हो रही थी गुफ़्तुगू आज मुम्किनात पर ला के फूल रख दिया उस ने मेरे हात पर हम सदा निभाएँगे छोड़ कर न जाएँगे आ गई हमें हँसी आज उन की बात पर आप ही बताइए हम से मत छुपाइए आप भी तो थे मियाँ जा-ए-वारदात पर हिज्र की शबें सभी सुब्हें सारी दर्द की कितना बोझ रख लिया हम ने अपनी ज़ात पर सब निरास क्यूँ हुए दिल उदास क्यूँ हुए सारे मिल के सोचिए इन मुआ'मलात पर कोई क्या समझ सके उन की अहमियत है क्या ग़ौर कर रहा हूँ मैं आज जिन निकात पर