लोग करते हैं फ़क़त वक़्त गुज़ारी पागल बात करता है यहाँ कौन हमारी पागल उस ने इक बार कहा कोई नहीं तुम जैसा तब से मैं लगने लगी ख़ुद को भी प्यारी पागल वो भी हँस हँस के किया करता था बातें और मैं उस की बातों में चली आई बिचारी पागल एक मुद्दत से तिरी राह में आ बैठी है इश्क़ में तेरे हुई राज-कुमारी पागल मैं ने पूछा कि कोई मुझ से ज़ियादा है हसीं आइना हँस के ये बोला अरी जा री पागल यूँ नहीं है कि फ़क़त नैन हुए हैं मेरे देख कर तुझ को हुई सारी की सारी पागल उस ने पूछा कि मिरी हो नाँ तो फिर मैं ने कहा हाँ तुम्हारी मैं तुम्हारी मैं तुम्हारी पागल मैं 'रबाब' इस से ज़ियादा तुझे अब क्या देती ज़िंदगी मैं ने तिरे नाम पे वारी पागल