लोग उड़ के जा पहोंचे बे-कराँ ख़लाओं में हम असीर हैं अब तक जहल की गुफाओं में बे-सबब नहीं घर में तीरगी हुई होगी चाँद छुप गया होगा ज़ुल्फ़ की घटाओं में हम अमल से हैं ख़ाली यूँही होगी पामाली ढूँडिए न तासीरें बे-असर दुआओं में ये तसलसुल-ए-तूफ़ाँ ये अज़ाब लहरों का कौन सी बशारत है चीख़ती हवाओं में क्या यहाँ अमीरों के खेल होने वाले हैं उड़ रहे हैं ग़ुब्बारे शहर की फ़ज़ाओं में किश्त-ए-ज़ाफ़राँ हो कर हर-नफ़स महक उट्ठे मेरे प्यार की ख़ुशबू घोल दो हवाओं में क़ौम के सफ़ीने का अब ख़ुदा ही हाफ़िज़ है इख़्तिलाफ़ बरपा है आज ना-ख़ुदाओं में कल थी जिन की मुट्ठी में गर्दिश-ए-ज़माना भी वक़्त की हैं ज़ंजीरें आज उन के पाँव में हम शरीफ़-ज़ादे हैं बे-हया नहीं लेकिन सर छुपाएँगे कैसे मुख़्तसर रिदाओं में नफ़रतों के सौदागर पर्चम-ए-अमाँ ले कर प्यार बाँटने निकले 'शाद' गाँव गाँव में