शो'ला जलता हुआ सर्द सी शाम में मन पिघलता हुआ सर्द सी शाम में वहशतों ने रग-ए-जाँ को काटा है ख़ूब दुख मसलता हुआ सर्द सी शाम में आसमानों पे रंगों के मेले भी थे दिन था ढलता हुआ सर्द सी शाम में कौन था दश्त में संग मेरे कहो साथ चलता हुआ सर्द सी शाम में बे-ख़ुदी को कहूँ क्या मैं अपना बदन देखूँ ढलता हुआ सर्द सी शाम में