लुग़त का पेच ये मुझ को ख़राब लगता है जवानी लगती है जबकि शबाब लगता है वो मुस्कुराए तो क्या जाने क्या क़यामत हो हसीन इतना जब उस का इताब लगता है ये कपकपाते हुए लब झुकी हुई पलकें मिरे सवाल का शायद जवाब लगता है तुम्हारे हुस्न की तारीफ़-ए-मुख़्तसर ये है हुजूम-ए-गुल में शगुफ़्ता गुलाब लगता है तू दिल पे ठेस लगा जा कोई सदा के लिए ये तेरा रोज़ बिछड़ना अज़ाब लगता है मोहब्बतों का ख़ज़ाना जिसे वो कहते हैं मुझे हबाब के आगे हबाब लगता है सज़ा-ए-जुर्म-ए-मोहब्बत वो दे के पछताए मिरा गुनाह अब उन को सवाब लगता है मुबालग़ा है कि है 'सरफ़राज़' हुस्न-ए-नज़र कभी वो फूल कभी माहताब लगता है