लोग ख़्वाहाँ थे सो दिल हो गया कंगाल मिरा तुम भी ख़ुश देख के हो जाओ बुरा हाल मिरा इश्क़ की रू से तो मैं क़ैस का हम-ज़ुल्फ़ हुआ जब वही दश्त-ए-जुनूँ ठहरा है सुसराल मिरा मुँह बनाए हुए क्यों पीछे पड़ी है दुनिया पहले ही दिल ग़म-ए-फ़ुर्क़त से है पामाल मिरा है रवाँ मेरी तबीअ'त में मोहब्बत ऐसे जज़्ब होता है किसी ज़र्फ़ में सय्याल मिरा रुल गया चाह-ए-ज़नख़दाँ के तिलिस्मात में दिल ग़म-ए-दौराँ से तो बीका न हुआ बाल मिरा अपनी तदबीर की ख़ामी पे मैं सर धुनता हूँ हाल-ए-बद पर कोई मौक़फ़ नहीं फ़िलहाल मिरा हर क़दम एक नई जंग के मुतरादिफ़ है पिछले हर साल से संगीन है ये साल मिरा 'सरफ़राज़' अपने ज़माने को मोहर्रम न कहूँ कोई रमज़ान मुबारक है न शव्वाल मिरा