लुटाओ जान तो बनती है बात किस ने कहा ये बज़्म-ए-इश्क़ में राज़-ए-हयात किस ने कहा रह-ए-तलब में सुनाता कोई तराना-ए-नौ यहाँ फ़साना-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ात किस ने कहा अभी सवाबित-ओ-सय्यार में है फ़स्ल बहुत सिमट चुकी है बहुत काएनात किस ने कहा हर इक चोट पे खुलती है आँख इंसाँ की हैं ख़िज़्र-ए-राह-ए-तलब हादसात किस ने कहा हम आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाए मगर अभी नहीं है शुऊर-ए-हयात किस ने कहा हम अपनी धुन में हैं मसरूफ़ किस तरफ़ देखें हमें नहीं है ग़म-ए-इल्तिफ़ात किस ने कहा हमें सुकून मयस्सर नहीं मगर 'अख़्तर' हमारे दौर को दौर-ए-नजात किस ने कहा