लुत्फ़ चाहो इक बुत-ए-नौ-ख़ेज़ को राज़ी करो नौकरी चाहो किसी अंग्रेज़ को राज़ी करो लीडरी चाहो तो लफ़्ज़-ए-क़ौम है मेहमाँ-नवाज़ गप-नवीसों को और अहल-ए-मेज़ को राज़ी करो ताअत-ओ-अम्न-ओ-सुकूँ का दिल को लेकिन हो जो शौक़ सब्र पर तब-ए-हवस-अंगेज़ को राज़ी करो ज़क-ज़क-ओ-बक़-बक़ में दुनिया के न हो 'अकबर' शरीक चुप ही रहने पर ज़बान-ए-तेज़ को राज़ी करो