लुत्फ़ का रब्त है कोई न जफ़ा का रिश्ता दिल से कुछ दूर है ज़ालिम की अना का रिश्ता दस्त-ए-ईसा भी वही बाज़ू-ए-क़ातिल भी वही कितना नाज़ुक है चराग़ों से हवा का रिश्ता जब्र-ए-हालात कहो ग़म की मुकाफ़ात कहो टूट भी जाता है होंटों से नवा का रिश्ता सोचिए तो सभी अपने हैं कोई ग़ैर नहीं हाकिम-ए-शहर से है जुर्म-ओ-सज़ा का रिश्ता मंज़र-ए-ज़ीस्त में कुछ रंग तो भर देता है ख़ार-ज़ारों से किसी आबला-पा का रिश्ता फूल नायाब सही ज़ख़्म तो नायाब नहीं आज भी दिल से वही आब-ओ-हवा का रिश्ता क्या करें रस्म-ए-ज़माना की शिकायत 'ताबाँ' दर्द से रखते हैं हम लोग सदा का रिश्ता