लुत्फ़-ए-हयात-ए-नौ है हर इक इंक़लाब में हैं अस्ल ज़िंदगी के मज़े पेच-ओ-ताब में यूँ तो बहुत सी बातें हैं दिल की किताब में लेकिन है ग़म का तज़्किरा हर एक बाब में लग जाएँ चार चाँद अभी आफ़्ताब में तहलील कर के देखे तो कोई गुलाब में उफ़ ये इ'ताब पहले ही ख़त के जवाब में धोका मुझे ज़रूर हुआ इंतिख़ाब में फिर क्यूँ न तू ब-ग़र्क़ हो जाम-ए-शराब में है आफ़्ताब रक़्स-कुनाँ माहताब में फिर भी मगर निगाह किसी की इसी पे है क्या रह गया है अब दिल-ए-ख़ाना-ख़राब में आशिक़ ख़ुशी से मर न कहीं जाए सुनते ही तस्वीर-ए-दिल है आई उधर से जवाब में इस तरह गुल शगुफ़्ता है शबनम से भीग के बैठा हो कोई जैसे कोई नहा कर शराब में तर-दामनी में आए नज़र हम ही पेश पेश आ'माल-ए-ज़िंदगी के हिसाब-ओ-किताब में नफ़रत का भी जवाब मोहब्बत से दीजिए लिक्खा यही है दिल की मुक़द्दस किताब में अनमोल दिल सा गौहर-ए-नायाब देखिए तोहफ़ा है पेश ख़िदमत-ए-आली-जनाब में जन्नत का तज़्किरा कभी कू-ए-सनम की बात दोनों जहाँ का लुत्फ़ है जाम-ए-शराब में इस फ़ित्ना-ज़ा को कौन ज़माने में मुँह लगाए बद-बू-ए-शर है आ रही नाम-ए-शराब में अहद-ए-जुमूद जीते-जी बे-मौत की है मौत है लुत्फ़ ज़िंदगी का तो बस इंक़लाब में अल्लाह कह के याद करें या सनम कहें रहने दें हुस्न को यूँही लेकिन हिजाब में ज़ब्त-ए-ग़म-ए-वफ़ा का रहे हर घड़ी ख़याल पहला सबक़ यही है मोहब्बत के बाब में 'माहिर' ग़म-ए-हबीब का अल्लाह भला करे अक्सर ग़ज़ल हुई है इसी पेच-ओ-ताब में