ये जो आबाद होने जा रहे हैं बहुत नाशाद होने जा रहे हैं जुदाई की घड़ी सर पर खड़ी है हम उस की याद होने जा रहे हैं तिरी चश्म-ए-तमाशा की हवस में फ़क़त बर्बाद होने जा रहे हैं गिरफ़्तारान-ए-दाम-ए-ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ बहुत आज़ाद होने जा रहे हैं सभी कुछ भूलता जाता है और हम इसी में शाद होने जा रहे हैं सभी आईना-रू ओ आईना-हा ग़िज़ा-ए-बाद होने जा रहे हैं