लुत्फ़-ए-वफ़ा नहीं कि वो बेदाद-गर नहीं ख़ामोश हूँ कि मेरी फ़ुग़ाँ बे-असर नहीं तेरे बग़ैर तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन हराम दर्द-ए-जिगर है लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर नहीं सज्दों से ना-मुराद है जल्वों से ना-उमीद वो रहगुज़र कि अब जो तिरी रहगुज़र नहीं तुम क्या गए कि सारा ज़माना चला गया वो रात-दिन नहीं हैं वो शाम-ओ-सहर नहीं हर हर रविश मुआ'मला-ए-हुस्न-ओ-आशिक़ी हर हर क़दम फ़रोग़-ए-जमाल-ए-नज़र नहीं बेबाक चाल चाल से बेबाक-तर नज़र अब हुस्न तो बहुत है मगर फ़ित्ना-गर नहीं ज़ख़्मों से चूर क़ाफ़िले पुर-ख़ार रास्ते इस में तिरा क़ुसूर तो ऐ राहबर नहीं दुनिया-ए-चश्म-ओ-गोश तो बरबाद हो गई अब कुछ बग़ैर मा'रका-ए-ख़ैर-ओ-शर नहीं