जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के बा'द लोग तूफ़ान उठा लेते हैं इल्ज़ाम के बा'द अक़्ल हैरान है उस शख़्स की दानाई पर जिस ने तोड़े कई असनाम हैं असनाम के बा'द दिन गुज़र जाता है हंगामा-ए-दुनिया में मगर चैन आता है कहाँ मुझ को सर-ए-शाम के बा'द जो अभी शोहरत ओ दौलत में हुआ है अंधा होश में आएगा लेकिन बुरे अंजाम के बा'द लोग रखते हैं तअ'ल्लुक़ भी ग़रज़ से अपनी रुख़ बदल लेते हैं मौसम की तरह काम के बा'द शाम के बा'द हुई सुब्ह तो जाना हम ने मिलती ख़ुशियाँ हैं मगर गर्दिश-ए-अय्याम के बा'द साथ देना था अभी 'नस्र' का कुछ देर तलक उठ गए आप भी मयख़ाने से दो जाम के बा'द