मआल-ए-आशिक़ी है अपनी हस्ती से गुज़र जाना कमाल-ए-ज़िंदगी है मौत से पहले ही मर जाना कलीसा से ग़रज़ मुझ को न मतलब दैर-ओ-का'बा से जबीं ने मेरी हर ज़र्रे को तेरा संग-ए-दर जाना ज़माना उस की क़िस्मत पर हमेशा नाज़ करता है मयस्सर हो जिसे महबूब के कूचे में मर जाना वो बज़्म-ए-ग़ैर में जाने लगे हैं शौक़ से जाएँ मगर तुर्फ़ा-सितम है मेरे कूचे से गुज़र जाना 'कमाल' उन की अयादत इक क़यामत कर गई बरपा शिकन माथे पे पड़ना और मरीज़-ए-ग़म का मर जाना