मामूर-ए-उंस क़ल्ब-ए-मुनव्वर तलाश कर लबरेज़ इल्तिफ़ात से पैकर तलाश कर तुझ को जो दे दुआ तो ख़ुदा रद नहीं करे ऐसा कोई फ़क़ीर-ओ-क़लंदर तलाश कर मंज़िल से हम-कनार करे कारवाँ को जो ऐसा कोई जहान में रहबर तलाश कर बुलबुल हो फ़ाख़्ता हो कि शाहीं कि बाज़ हो सब मिल कि उड़ सकें तू वो अम्बर तलाश कर मुश्किल बहुत है फिर भी ज़माने में ऐ 'ज़की' महर-ओ-वफ़ा-ओ-ख़ुल्क़ का पैकर तलाश कर ग़व्वास गर समझता है ख़ुद को तो ऐ 'ज़की' तो बहर-ए-फ़न में डूब के गौहर तलाश कर ज़ुल्म-ओ-सितम तो हद से गुज़रने लगे 'ज़की' अम्न-ओ-अमाँ का कोई पयम्बर तलाश कर