मान ले अब भी मिरी जान-ए-अदा दर्द न चुन काम आती नहीं फिर कोई दुआ दर्द न चुन और कुछ देर में मुझ को चले जाना होगा और कुछ देर मुझे ख़्वाब दिखा दर्द न चुन एक भी दर्द न कम होगा कई सदियों में अब भी कहता हूँ तुझे वक़्त बचा दर्द न चुन वो जो लिक्खा है किसी तौर नहीं टल सकता आ मिरे दिल में कोई दीप जला दर्द न चुन मैं तिरे लम्स से महरूम न रह जाऊँ कहीं आख़िरी बार मुझे ख़ुद से लगा दर्द न चुन अब तो ये रेशमी पोरें भी छिदी जाती हैं ख़ुद को अब बख़्श भी दे ज़ुल्म न ढह दर्द न चुन ये नहीं होंगे तो खाए नहीं हो जाऊँगा मैं मेरे ज़ख़्मों से कोई गीत बना दर्द न चुन कुछ न देगा ये मसाइल से उलझते रहना छोड़ सब कुछ मिरी बाँहों में समा दर्द न चुन